(समास का अर्थ एवं परिभाषा)

👉 समास - समास का तात्पर्य है - 'संक्षेप'

👉 समास दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बनने वाले नवीन एवं सार्थक शब्दों को कहते हैं।

👉 आपस में संबंध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्दों का मेल समास कहलाता है।

👉 समस्त पद के सभी पदों को अलग अलग करने की प्रक्रिया को समास विग्रह कहते हैं। जैसे: रामराज्य - राम के जैसा राज्य।

👉 समास के नियमों से बना शब्द 'समस्त पद' या 'समासिक शब्द' कहलाता है, अर्थात कारक चिन्हों (के, में, को, पर आदि)

👉 संयोजक पदों या विभक्ति आदि का लोप करके समस्त पद या समासिक शब्द बनाए जाते हैं - जैसे: रामराज्य, दाल-रोटी, यथासंभव आदि।


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                  @ समास की विशेषताएं @

👉 समास में कम से कम दो शब्दों या पदों का योग होता है।

👉 समास में मिलने वाले पदों के विभक्ति प्रत्यय का लोप हो जाता है।

👉 समास प्राय सजातीय शब्दों का ही होता है, जैसे - धर्मशाला।

👉 समास रचना में विभक्ति का लोप हो जाता है तथा कुछ शब्दों में विकार भी उत्पन्न हो जाता है। जैसे - घुड़सवार (घोड़े का सवार - यहां घोड़े का घु बन जाना)

शब्दयोग - नया शब्द को समस्त पद/समासिक पद। 

जैसे - राजकुमार (राजा का कुमार) इसे समास का विग्रह/व्यास भी कहते हैं।

राजा - प्रथम पद/ पहला/ पूर्व पद

का -

पुत्र - उत्तर पद /दूसरा /द्वितीय पद

         (संधि और समास में अन्तर)

(1) समास में दो शब्दों का योग होता है, किंतु संधि में दो ध्वनियों अथवा वर्णों का मेल होता है।

(2) समास में शब्दों के मध्य की विभक्ति एवं प्रत्यय लुप्त हो जाते हैं, परंतु संधि में निकटतम ध्वनियों के मेल से विकार उत्पन्न होता है।

(3) समास के नियमों से बने शब्दों को उसके मूल रूप में वापस लाना समास विग्रह कहलाता है जबकि संधि को उसके मूल मे लाना संधि विच्छेद कहलाता है।


समास के 6 भेद होते हैं तथा पदों की प्रमुखता से समास के भेदों का ज्ञान होता है।

(1) अव्ययीभावसमास - (पूर्व पद प्रधान)

(2) तत्पुरुष समास - (उत्तर पद प्रधान)

(3) द्वंद्ध समास - (दोनों पद प्रधान)

(4) द्विगु समास - (उत्तर पद प्रधान)

(5) बहुव्रीहि समास - (दोनों पदों में से कोई सा भी पद प्रधान नहीं होता)

(6) कर्मधारय समास - (उत्तर पद प्रधान)


(1) अव्ययीभाव समास :- जिस समास का प्रथम पद (पूर्व पद) प्रधान हो जो क्रियाविशेषण अव्यय का कार्य करता हो अर्थ अर्थात क्रिया की विशेषता बताता हो, वह अव्ययीभाव समास का कहलाता है।

अव्ययीभाव समास की विशेषताएं -

👉 प्रथम पद प्रधान होता है।

👉 प्रथम पद या पूर्व पद अव्यय होता है जैसे - (वह शब्द जो लिंग, वचन, काल व कारक के अनुसार न बदले)

👉 यदि एक शब्द की पुनरावृति हो और दोनों शब्दों के मिलने पर अव्यय की तरह प्रयुक्त हो, वहां भी अव्ययीभाव समास होता है।

👉 जिस समास का पहला पद अनु, आ, प्रति, यथा, भर, यावत, हर आदि से शुरू हो, वह अव्ययीभाव समास होता है।

उदाहरण -

(समास)        (समास-विग्रह)

यथाशक्ति  -  शक्ति के अनुसार

आजन्म  -  जन्मपर्यंत (जन्म से लेकर)

प्रत्यक्ष  -  अक्षि के प्रति

बेलाग  -  बिना लाग के

बेशर्म  -  बिना शर्म के

उपकूल  -  कूल के निकट

भरपेट  -  पेट भर के

अनुरूप  -  रूप के योग्य

प्रत्येक  -  प्रीति-एक

हाथोंहाथ  -  हाथ ही हाथ में

हर घड़ी  -  घड़ी-घड़ी

दिनोंदिन  -  दिन ही दिन में

गांव-गांव  -  प्रत्येक गांव

घर घर  -  प्रत्येक घर

प्रतिदिन  -  प्रत्येक दिन

यथेष्ट  -  जितना इस्ट हो


(2) तत्पुरुष समास :- जिस समास का उत्तर पद अर्थात अंतिम पद प्रधान होता है, इसमें समस्त पद बनाते हुए, कारक चिन्ह लुप्त हो जाते हैं।

(कर्ता तथा संबोधन का समास नहीं बनता है।) 

👉 कर्म तत्पुरुष समास - इसमें कर्म कारक की विभक्ति 'को' का लोप हो जाता है।

उदाहरण -

(समास)     (समास विग्रह)

स्वर्ण प्राप्त  -  स्वर्ग को प्राप्त

गगनचुंबी  -  गगन को चूमने वाला

चिड़ीमार  -  चिड़ियों को मारने वाला

गृहागत  -  गृह को आगत

मुंहतोड़  -  मुंह को तोड़ने वाला

विदेशगमन  -  विदेश को गमन

स्याहीचूस  -  स्याही को चूसने वाला

रोजगारोन्मुख  -  रोजगार को उन्मुख

जितेंद्रिय  -  इंद्रियों को जीतने वाला

यशप्राप्त  -  यश को प्राप्त

रथचालक  -  रथ को चलाने वाला

सर्वप्रिय  -  सबको प्रिय

मक्खीमार  -  मक्खी को मारने वाला

परलोकगमन  -  परलोक को गमन

जनप्रिय  -  जनता को प्रिय

स्वर्गगत  -  स्वर्ग को गया हुआ


👉 करण तत्पुरुष समास - वह समाज जिसमें कारक चिन्ह (से, के, द्वारा) का लोप हो जाता है, करण तत्पुरुष कहलाता है।

उदाहरण - 

(समास)        (समास विग्रह)

मुंहमांगा  -  मुंह से मांगा

गुणहीन  -  गुण से हीन

सूररचित  -  सूर के द्वारा रचित

हस्तलिखित  -  हस्त से लिखित

प्रेमातुर  -  प्रेम से अतुर

भुखमरा  -  भूख से मरा

ईश्वरप्रदत्त  -  ईश्वर द्वारा प्रदत

मनगढ़ंत  -  मन से गढ़ा हुआ

रेखांकित  -  रेखा से अंकित

शोकाकुल  -  शोक से आकुल

मनचाहा  -  मन से चाहा

तुलसीकृत  -  तुलसी द्वारा कृत

अकाल पीड़ित  -  अकाल से पीड़ित

आंखों देखी - आंखों से देखी

श्रमसाध्य - श्रम से साध्य

भयाकुल - भय से आकुल

हिमाच्छादित - हिम से आच्छादित

व्यवहारकुशल - व्यवहार से कुशल

करुणापूर्ण - करुणा से पुर्ण

अभावगस्त  - अभाव से ग्रस्त

👉 सम्प्रदान तत्पुरुष समास -  जहां संप्रदान कारक चिन्ह 'के लिए' का लोप होता है।

उदाहरण -

(समास)         (समास विग्रह)

सत्याग्रह  -  सत्य के लिए आग्रह

गौशाला  -  गौ के लिए शाला

परीक्षाभवन  -  परीक्षा के लिए भवन

हथकड़ी  -  हाथ के लिए कड़ी

यज्ञशाला  -  यज्ञ के लिए शाला

पुण्यदान  -  पुण्य के लिए दान

युद्धाभ्यास  -  युद्ध के लिए अभ्यास

चिकित्सालय  -  चिकित्सा के लिए आलय

गुरु दक्षिणा  -  गुरु के लिए दक्षिणा

देशभक्ति  -  देश के लिए भक्ति

प्रतीक्षालय  -  प्रतीक्षा के लिए आलय

कृष्णार्पण  -  कृष्ण के लिए अर्पण

मालगोदाम  -  माल के लिए गोदाम

परीक्षोपयोगी  -  परीक्षा के लिए उपयोगी

पुत्रशोक  -  पुत्र के लिए शोक

रसोईघर  -  रसोई के लिए घर

युद्धभूमि  -  युद्ध के लिए भूमि

डाकगाड़ी  -  डाक के लिए गाड़ी

हवन सामग्री  -  हवन के लिए सामग्री

प्रयोगशाला  -  प्रयोग के लिए शाला

तपोवन  -  तप के लिए वन

आरामकुर्सी  -  आराम के लिए कुर्सी

व्यामशाला  -  व्यायाम के लिए शाला

👉 अपादान तत्पुरुष समास:- यहां अपादान कारक 'से' (पृथक/अलग होने के अर्थ में) की विभक्ति का लोप हो जाता है।

उदाहरण -

(समास)       (समास विग्रह)

जन्मांध  -  जन्म से अंधा

पापमुक्त  -  पाप से मुक्त

बन्धनमुक्त  -  बन्धन से मुक्त

कर्तव्यविमुख  -  कर्तव्य से विमुख

ऋणमुक्त  -  ऋण से मुक्त

जलहीन  -  जल से हीन

पथभ्रष्ट  -  पथ से भ्रष्ट

अपराधमुक्त  -  अपराध से मुक्त

आवरणहीन  -  आवरण से हीन

रोगमुक्त  -  रोग से मुक्त

धनहीन  -  धन से हीन

धर्मविमुख  -  धर्म से विमुख

जातिभ्रष्ट  -  जाति से भ्रष्ट

गुणहीन  -  गुण से हीन

देशनिकाला  -  देश से निकाला

पद दलित  -  पद से दलित

नेत्रहीन  -  नेत्र से हीन

दुखसंतप्त  -  दुख से संतप्त

जीवनमुक्त  -  जीवन से मुक्त

👉 सम्बन्ध तत्पुरुष समास:- जहां सम्बन्ध कारक विभक्ति 'का, की, के' का लोप हो, वहां सम्बन्ध तत्पुरुष समास होता है।

उदाहरण -

(समास)       (समास विग्रह)

प्रेमसागर  -  प्रेम का सागर

भारतरत्न  -  भारत का रत्न

राजपुत्र  -  राजा का पुत्र

विद्यासागर  -  विद्या का सागर

देशरक्षा  -  देश की रक्षा

राजाज्ञा  -  राजा की आज्ञा

शिवालय  -  शिव का आलय

अमृतधारा  -  अमृत की धारा

आज्ञानुसार  -  आज्ञा के अनुसार

पूंजीपति  -  पूंजी का पति

पुस्तकालय  -  पुस्तक का आलय

सचिवालय  -  सचिव का आलय

देवमूर्ति  -  देव की मूर्ति

गृहस्वामी  -  गृह का स्वामी

प्रसंगानुसार  -  प्रसंग के अनुसार

मृत्युदंड  -  मृत्यु का दण्ड

स्वास्थ्यरक्षा  -  स्वास्थ्य की रक्षा

घुड़दौड़  -  घोड़ों की दौड़

प्रजापति  -  प्रजा का पति

राजकन्या  -  राजा की कन्या

चन्द्रोदय  -  चन्द्रोदय

गुरुसेवा  -  गुरु की सेवा

👉 अधिकरण तत्पुरुष समास :- जहां अधिकरण कारक की विभक्ति 'में' 'पे' 'पर' का लोप होता है, वहां अधिकरण तत्पुरुष होता है।

उदाहरण - 

(समास)      (समास विग्रह)

आनंदमग्न  -  आनंद में मग्न

पुरुषोत्तम  -  पुरुषों में उत्तम

लोकप्रिय  -  लोक में प्रिय

शोकमग्न  -  शोक में मग्न

आपबीती  -  आप पर बीती

कलानिपुण  -  कला में निपुण

कार्य कुशल  -  कार्य में कुशल

गृहप्रवेश  -  गृह में प्रवेश

हवाई यात्रा  -  हवा में यात्रा

रेलगाड़ी  -  रेल पर चलने वाली गाड़ी

वनपशु  -  वन में रहने वाले पशु

जलयान  -  जल पर चलने वाले यान

गृहस्थ  -  गृह में स्थित

कविश्रेष्ठ  -  कवियों में श्रेष्ठ

दीनदयाल  -  दीनों पर दया करने वाले

मृत्युंजय  -  मृत्यु पर जय

जलमग्न  -  जल में मग्न

कर्तव्यनिष्ठा  -  कर्तव्य में निष्ठा


(3) कर्मधारय समास :- जिस पद का प्रथम पद विशेषण तथा अंतिम पद विशेष्य हो, वह कर्मधारय समास कहलाता है।

इस समास में कहीं-कहीं उपमेय, उपमान का संबंध होता है तथा विग्रह करने पर रूपी शब्द प्रयुक्त होता है।

कर्मधारय समास पहचानने का नियम - इसे विग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में है, जो, के समान आदि शब्द आते हैं।

किस समास में शब्द की विशेषता बतायी जाती है। जैसे महान कवि, परम आनंद व मंदबुद्धि आदि।

उदाहरण

(समास)      (समास विग्रह)

महाकवि  -  महान है जो कवि

पिताम्बर  -  पीत है जो अम्बर

नीलकमल  -  नील है जो कमल

महापुरुष  -  महान है जो पुरुष

मंद बुद्धि  -  मंद है जिसकी बुद्धि

उड़नतश्तरी  -  होती है जो तश्तरी

शीतोष्ण  -  जो शत है, जो उष्ण है

कालास्याह  -  जो काला है जो स्याह

चंद्रमुख  -  चन्द्र के समान मुख

परमानंद  -  परम है जो आनन्द

सुविचार  -  अच्छा है जो विचार

श्वेताम्बर  -  श्वेत है जो अंबर

लालटोपी  -  लाल है जो टोपी

नीलाम्बर  -  नीला है जो अंबर

महादेव  -  मोहन है जो देव

लालमणि  -  लाल है जो मणि

कापुरुष  -  कायर है जो पुरुष

मालगाड़ी  -  माल को ढोने वाली गाड़ी

वनमानुष  -  वन में रहने वाला मनुष्य

प्रधानाध्यापक  -  प्रधान है जो अध्यापक

महात्मा  -  महान है जो आत्मा

क्रोधाग्नि  -  क्रोध रूपी अग्नि

अधमरा  -  आधा है जो मरा

नीलकंठ  -  नीला है जो कंठ

कनकलता  -  कनक के समान लता

देहलता  -  देह रूपी लता

चरणकमल  -  कमल रूपी चरण

पर्णकुटी  -  पर्ण से बनी कुटी

दुश्चरित्र  -  बुरा है जो चरित्र

मृगलोचन  -  मृग के समान लोचन

महावीर - महान है जो वीर


(4) बहुव्रीहि समास :- जिस समस्त पद में पहला व दूसरा मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं, उसमें बहुव्रीहि समास होता है।

बहुव्रीहि समास को पहचानने का नियम - इस समास में पहला पद विशेषण तथा दूसरा पद संज्ञा होता है।

इस समास को विग्रह करने में 'वाला, वाली है, और जो, जिसका, जिसकी, जिसके व वह' आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण - 

(समास)  ‌  (समास विग्रह)

महावीर  -  महान है जो वीर (हनुमान)

पंकज  -  कीचड़ में पैदा हो जो (कमल)

गिरिधर  -  गिरि को धारण करने वाला (कृष्ण)

प्रिलोचन  -  तीन है लोचन जिसके (शिव)

विषधर  -  विष को धारण करने वाला (शंकर)

मृत्युंजय  -  मृत्यु को जीतने वाला (शंकर)

पिताम्बर  -  पीत है अम्बर जिसका (कृष्ण)

निशाचर  -  निशा में विचरण करने वाला (राक्षस)

चतुर्भुज  -  चार भुजाएं हैं जिसकी (विष्णु)

लम्बोदर  -  लम्बा है उदर जिसका (गणेश)

मुरलीधर  -  मुरली धारण करने वाला (कृष्ण)

नीलकंठ  -  नीला है कंठ जिसका (शिव)

दिगम्बर  -  दिशाएं है वस्त्र जिसके (नग्न)

दशानन  -  दस आनन है जिसके (रावण)

चतुर्मुख  -  चार हैं मुख जिसके (ब्रह्मा)

चक्रपाणि  -  चक्र है हाथ में जिसके (कृष्ण)

गिरीश  -  पर्वतों का राजा (हिमालय)

कमलनयन  -  कमल जैसे नयनों वाला (कृष्ण)

सहस्स्र  -  सहस्त्र है आंखें जिसकी (इन्द्र)

मिठबोला  -  मीठी है बोली जिसकी (विशेष व्यक्ति)

वीणापाणि  -  वीणा है पाणि में जिसके (सरस्वती)

चन्द्रशेखर  -  चन्द्र है सिर पर जिसके (शंकर)

चन्द्रमौली  -  चन्द्र हैं मौली पर जिसके (शंकर)

बाताबाती  -  बातों बात से जो झगड़ा हुआ

गालागाली  -  गालियों से जो झगड़ा हुआ

धक्काधुक्की - धक्कों से जो लड़ाई हुई

मुक्कामुक्की  - मुक्कों से जो लड़ाई हुई

लाठालाठी  -  लाठियों से जो लड़ाई हुई


(5) द्विगु समास :- जिस समस्त पद का पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण हो, वह द्विगु समास कहलाता है, इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है।

उदाहरण - 

(समास)      (समास विग्रह)

नवनिधि  -  नव निधियों का समाहार

त्रिवेणी  -  तीन वेणियों का समाहार

त्रिलोक  -  तीन लोकों का समूह

सप्तदीप  -  सात द्विपो का समूह

नवरत्न  -  नौ रत्नों का समूह

चौराहा  -  चार राहों का समूह

पंचमढ़ी  -  पांच मढ़ियों का समूह

तिरंगा  -  तीन रंगों का समूह

नवग्रह  -  नव ग्रहों का समूह

दोपहर  -  दो पहरों का समूह

सप्तऋषि  -  सात ऋषियों का समूह

नवरात्र  -  नौ रात्रियों का समूह

चौमासा  -  चार मासों का समाहार

अष्टाध्यायी  -  आठ अध्यायों का समूह

सप्ताह  -  सात दिनों का समाहार

त्रिफला  -  तीन फलों का समूह

दुराहा  -  दो राहों का समाहार

चतुष्कोण  -  चार कोण वाला

पंचनद  -  पांच नदियों का समूह

त्रिकाल  -  तीन कालों का समूह

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(6) द्वन्द्ध समास :- वह समास, जिसमें समस्त पद (दोनों पद) प्रधान हो तथा दोनों पद एक दूसरे के विलोम होते हैं परंतु सदैव नहीं तथा विग्रह करने पर 'और' 'अथवा' 'या' का प्रयोग हो, द्वंद्ध समास कहलाता है।

इसमें दोनों पदों के बीच योजक चिन्ह (-) लगा होता है।

उदाहरण -

(समास)                (समास विग्रह)

जन्म - मरण          जन्म और मरण

दाल - रोटी            दाल और रोटी

तन - मन               तन और मन

अमीर - गरीब         अमीर और गरीब

यश - अपयश         यश और अपयश

पाप - पुण्य            पाप और पुण्य

नर - नारी               नर और नारी

भला - बुरा             भला या बुरा

मां - बाप               मां और बाप

रात - दिन              रात और दिन

सुख - दुख             सुख और दुख

देश - विदेश           देश और विदेश

देवासुर                 देव और असुर

थोड़ा - बहुत           थोड़ा या बहुत

लाभ - हानि            लाभ या हानि

राजा - प्रजा           राजा और प्रजा

ठंडा - गरम            ठंडा या गर्म

दूध - दही             दूध या दही

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