जगदलपुर। छत्‍तीसगढ़ में मंदिरों की नगरी बारसूर की ऐतिहासिक मूर्तियों की ओर पर्यटकों को आकृष्ट करने के उद्देश्य से चार साल में बारसूर महोत्सव मना लाखों रुपए किए गए, परन्तु यत्र-तत्र बिखरी पड़ी वहां की पुरानी मूर्तियों को सहेजने के लिए कोई राशि खर्च नहीं की जा रही है। हालात ऐसे हैं कि कई देवालय झाड़ियों में ढंक गई हैं वहीं खुले में पड़ी मूर्तियों को पक्षियों ने गंदा कर दिया है। ज्ञात हो कि बारसूर में एक दर्जन से ज्यादा मंदिर व मूर्तियां अभी भी दर्शनीय हैं, परन्तु महज तीन मंदिर केन्द्रीय पुरातत्व और एक मंदिर छग पुरातत्व विभाग के अधीन है।
संभागीय मुख्यालय से 90 किमी दूर बारसूर को बाणासूर की पौराणिक नगरी माना जाता है। किसी जमाने में यहां 147 मंदिर और इतने ही तालाब थे। समय की मार ने मंदिरों को भग्नावशेष में बदल दिया है वहीं तालाबों को लोगों ने खेत बना लिया है।
बारसूर की दुर्दशा पर लगातार समाचार प्रकाशित होने के चलते वर्ष 2011 में छग पर्यटन मंडल व जिला प्रशासन के संयुक्त प्रयास से बारसूर महोत्सव की शुरूवात की गई। इन चार वर्षां में महोत्सव के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों और खेल स्पर्धाओं के नाम पर लाखों रूपए खर्च किए गए, वहीं मंदिरों तक सैलानी पहुंच सके इसलिए सीसी रोड का निर्माण भी कराया गया परन्तु वहां के मंदिरों और मूर्तियों की सफाई के लिए फूटी कौड़ी भी खर्च नहीं की गई। पेदम्मागुड़ी, 16 खंबा मंदिर सिंगराज तालाब मध्य विष्णु प्रतिमा, गनमन तालाब मध्य के शिवालय के अलावा अन्य मंदिर व मूतियां झाड़ियों से ढंक गई हैं।
सिंघराज और गनमन तालाब के मध्य खुले में पड़ी दुर्लभ मूर्तियों को जलीय पक्षियों ने गंदा कर दिया है,परन्तु इन मूर्तियों को साफ करने या 16 खंबा, पेदम्मागुड़ी की झाड़ियों को हटवाने का प्रयास एक बार भी नहीं किया गया। छग पुरातत्व विभाग बत्तीसा मंदिर के सामने उद्यान विकसित करने की बात करता आ रहा है परन्तु यह काम भी चार साल में नहीं हो पाया । पहले बारसूर महोत्सव के पूर्व दंतेवाड़ा के तत्कालीन जिलाधीश आर. प्रसन्ना ने झाड़ियों को साफ करवाया था ,परन्तु महोत्सव के नाम पर लाखों खर्च करने वाले बाद के अधिकारियों ने यह काम भी नहीं करवाया ।
पुरातत्व संस्थाएं उदासीन
केन्द्रीय पुरात्त्व सर्वेक्षण विभाग गणेश मंदिर, मामा-भांजा और चन्द्रादित्य मंदिर और सैलानियों के लिए कभी ना खुलने वाले संग्रहालय तक सिमित है । इसी तरह छग पुरातत्व विभाग भी बत्तीसा मंदिर व दंतेश्वरी मंदिर तक सिमित है । दोनों ही पुरातत्व संस्थाएं शेष स्थलों के संवर्धन के लिए कोई काम नहीं कर रही है। इनकी उदासीनता का इस बात से अंदाजा लगाया जाता है कि पुरातात्विक महत्व का स्थल होने के बावजूद बारसूर में संपन्न हो चुके चार महोत्सव में एक बार भी इन्होने विभाग का पंडाल नहीं लगाया ।
कोई प्रोजेक्ट नहीं
चार साल पहले पुरातत्व विभाग के संयुक्त संचालक जेआर भगत ने बारसूर के सोलह खंबा और पेदम्मागुड़ी को विभाग के अधीन कर इन्हे व्यवस्थित करने का प्रोजेक्ट की प्रदेश सरकार को सौंपा था, परन्तु योजना के लिए सरकार से कोई साशि नहीं मिली । इस संदर्भ में छग पुरातत्व विभाग के संचालक राकेश चतुर्वेदी का कहना है कि बारसूर के लिए जिला प्रशासन राशि खर्च करती है ,विभाग नहीं ।
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