ताम्र-पाषाण कृषक संस्कृतियां -
नवपाषाण युग का अंत होते-होते दांतो का इस्तेमाल शुरु हो गया था धातुओं में सबसे पहले तांबे का प्रयोग हुआ तकनीकी दृष्टि से ताम्र पाषाण अवस्था हड़प्पा की कांस्य युगीन संस्कृति से पहले की है पर क्रम अनुसार भारत में हॉप्पा की कार्य संस्कृति पहले आती है ताम्र पाषाण युग के लोग अधिकांशत पत्थर और तांबे की वस्तुओं का प्रयोग करते थे वे मुख्यतः ग्रामीण समुदाय बनाकर ही रहते थे इसके विपरीत हड़प्पा के लोग कहां से का प्रयोग करते थे तथा नगरों में रहते थे।
इनकी बस्तियां थी दक्षिणी पूर्वी राजस्थान- आहर और गिलुंद।
मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग - मालवा, कयथा, एरण।
पश्चिमी महाराष्ट्र - मालवा।
दक्षिणी पूर्वी भारत।
ईसा पूर्व 1400-700 के आसपास की जोरवे संस्कृति विदर्भ के कुछ भागों तथा कोंकण के तट प्रदेश को छोड़कर सारे भारत में फैली थी, यो तो जोरवे संस्कृति ग्रामीण थी, फिर भी इसकी कई बस्तियां जैसे दैमाबाद और ईनामगांव नगरीकरण के स्तर तक पहुंच गई।
ताम्र पाषाण युग के लोग मवेशी पालते और खेती करते थे। वह गाय, भेड़, बकरी, सूअर और भैंस रखते थे, और हिरण का शिकार करते थे। ऊंट के अवशेष भी मिले हैं।
सामान्यत: वे लोग घोड़े के से परिचित नहीं थे। लोग गौ मांस भी खाते थे तथा गेहूं व चावल उपजाते थे। तिलहन में वह मसूर, उड़द, मूंग तथा मटर की खेती भी करते थे। लगभग यह सभी अनाज महाराष्ट्र में नर्मदा नदी के तट पर स्थित नवदाटोली में भी पाए जाते हैं। नवदातोली के लोग बेर तथा अलसी उगाते थे। ताम्र पाषाण युग के लोग प्राय पक्की ईंटों से परिचित नहीं थे। वे लोग कताई और बुनाई जानते थे क्योंकि मालवा में चरके और तालियां मिली है। वे लोग कपास से भी परिचित थे। ताम्र पाषाण युग के लोग मातृ देवी की पूजा करते थे। ताम्र पाषाण युग के लोग लिखने की कला नहीं जानते थे और न ही वे नगरों में रहते थे, जबकि कांस्य युग के लोग नगरवासी हो गए थे।