लालबहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 में मुगलसराय (उत्तर प्रदेश) में एक कायस्थ परिवार में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के यहाँ हुआ था। उनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे: सब उन्हें मुंशीजी ही कहते थे। बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में लिपिक (क्लर्क) की नौकरी कर ली थी। लालबहादुर की माँ का नाम रामदुलारी था। परिवार में सबसे छोटे होने के कारण लड़के लालबहादुर को परिवार वाले प्यार में नन्हें कहकर ही बुलाया करते थे। जब नन्हें 18 महीने का हुआ दुर्भाग्य से पिता का निधन हो गया। उनकी माँ रामदुलारी अपने पिता हजारीलाल के घर मिर्ज़ापुर चली गयीं। कुछ समय बाद उसके नाना भी नहीं रहे। ननिहाल में रहते हुए उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद की शिक्षा हरश्चंद्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई।बिना पिता के लड़के नन्हें की परवरिश करने में उसके मौसा रघुनाथ प्रसाद ने उसकी माँ का बहुत सहयोग किया।काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलने के बाद उन्होंने जन्म से चली आ रही जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा हमेशा के लिए हटा दिया और अपने नाम के आगे स्त्री शास्त्री ' लिया गया। इसका पश्चाताप शास्त्री शब्द लालबहादुर के नाम का पर्याय ही बन गया।
1928 में उनका विवाह मिर्जापुर निवासी गणेशप्रसाद की पुत्री ललिता से हुआ। ललिता शास्त्री से उनके 6 सन्तानें हुईं, दो पुत्रियाँ- कुसुम व सुमन और चार पुत्र-हरिकृष्ण, अनिल, सुनील व अशोक। उनके चार बेटों में से अनिल-अनिल शास्त्री और सुनील शास्त्री अभी बाकी हैं, बाकी दो दिव्यांग हो चुके हैं। अनिल शास्त्री कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता हैं, जबकि सुनील शास्त्री भारतीय जनता पार्टी में चले गए हैं।
जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमन्त्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसन हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधान मन्त्री का पद भार ग्रहण किया।
उनके शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे 3 वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को सर्वश्रेष्ठ नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी।इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।
ताशकंद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब ख़ान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी, 1966 की रात में रहस्यमयी परिस्थितियों में उनकी मौत हो गई।
उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिए मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
शास्त्री जी सभी भारतीय के लिए एक आदर्श के रूप में साबित हुए।