राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बीमा कानून (संशोधन) अध्यादेश 2014 पर 28 दिसंबर 2014 को हस्ताक्षर किया. केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने राज्यसभा की प्रवर समिति की रिपोर्ट के आधार पर बीमा कानून (संशोधन) विधेयक 2008 के अनुसार बीमा अधिनियम -1938, सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम-1972 तथा बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण अधिनियम- 1999 में संशोधन और संसद के अगले सत्र (वर्ष 2015) में विचार के लिए प्रस्तुत करने हेतु बीमा कानून (संशोधन) अध्यादेश 2014 को लागू करने की मंजूरी दी थी.

केन्द्रीय मंत्रिमंडल का यह कदम सामान्य रूप से अर्थव्यवस्था में तथा विशेष रूप से बीमा क्षेत्र में सुधार प्रक्रिया को मजबूत बनाने के व्यापक लक्ष्य हेतु उठाया गया. निवेश बढ़ाने, आर्थिक वृद्धि में बढ़ोत्तरी तथा अर्थव्यवस्था में रोजगार सृजन से संबंधित विभिन्न लक्ष्यों को हासिल करने के लिए देश में निवेश के लिए सहज वातावरण बनाना आवश्यक है.
इस अध्यादेश के लागू होने से प्रस्तावित बीमा कानून के विशेष प्रावधानों के जरिए उपर्युक्त महत्वपूर्ण उद्देश्यों की प्राप्ति हो सकेगी.

इस अध्यादेश के महत्वपूर्ण पहलू
•   इस अध्यादेश का उद्देश्य बीमा कानून (संशोधन ) विधेयक 2008 के अनुसार बीमा अधिनियम, 1938, सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972 तथा बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 में संशोधन करना है ताकि बीमा कानूनों के पुराने प्रावधानों को समाप्त किया जा सके तथा इसके  कारगर नियमन के लिए आईआरडीए को शक्ति प्रदान की जा सके.
•    भारतीय स्वामित्व और नियंत्रण की सुरक्षा के साथ भारतीय बीमा कंपनी में विदेशी हिस्सेदारी की सीमा 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत की जा सके.
•    इस अध्यादेश का उद्देश्य इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बीमा कंपनियों को नई और आकर्षक पॉलिशियों के जरिए पूंजी उगाहने की अनुमति देना है. इससे पूंजी वाले बीमा उद्योग को कारोबार में बढ़ोतरी के लिए संसाधन जुटाने में मदद मिलेगी.
•    इस अध्यादेश से आईआरडीए को ऋण चुकाने की क्षमता, निवेश, खर्च तथा कमीशन जैसे क्षेत्रों में बीमा कंपनियों की काम-काज को नियमन में रखने की शक्ति मिलेगी. नियमन श्रेष्ठ वैश्विक व्यवहारों के अनुरूप होगा. आईआरडीए के पास इस तरह की शक्ति के आभाव में हमारे नियामक ढांचे को लेकर विश्वास की कमी है और इससे बीमा क्षेत्र में निवेश प्रोत्साहित नहीं होता.
•    इस अध्यादेश में बीमा कंपनियों द्वारा बीमा कानूनों के पालन को सुनिश्चित करने के लिए दण्ड का भी प्रावधान है. यह उपभोक्ता हितों की रक्षा के लिए आवश्यक है.
विदित हो कि वैश्विक औसत की तुलना में भारत का बीमा बाजार का आकार कम है. इस क्षेत्र को बढ़ाने तथा विशेष कर ग्रामीण क्षेत्रों औऱ आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की बीमा सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने के लिए पूंजी की आवश्यकता है. भारतीय स्वामित्व और नियंत्रण की सुरक्षा व्यवस्था के साथ बीमा क्षेत्र में विदेशी हिस्सेदारी 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करना अध्यादेश का महत्वपूर्ण पहलू है. इससे पूंजी की उपलब्धता बढ़ेगी.
Previous Post Next Post